Chinti Kavita Ki Vyakhya चींटी कविता की व्याख्या

This article will share Chinti Kavita Ki Vyakhya चींटी कविता की व्याख्या।

यह कविता सुमित्रानंदन पंत द्वारा लिखित है। पिछले पोस्ट में मैंने Phool Aur Kaante और Gillu के Questions & Answers शेयर किये हैं तो आप उसे भी चेक कर सकते हैं।

Chinti Kavita Ki Vyakhya चींटी कविता की व्याख्या

शब्दार्थ

  • तम – अँधेरा 
  • लघुपद – छोटे पैर 
  • पिपीलिका – चींटी 
  • सतत – लगातार 
  • सांध – महल 
  • अरि – शत्रु 
  • वर – सुंदर 
  • श्रमजीवी – मेहनती 
  • सुनागरिक – अच्छा नागरिक 

चींटी को………………………………………….चुनती अविरत।

पंत जी अपनी कविता की पहली पंक्ति में ही पाठक से प्रश्न कर बैठते हैं। वे कहते हैं की क्या आपने चींटी को देखा है? पाठक के मन में एक जिज्ञासा पैदा करके वे फिर उसी प्रश्न का उत्तर देते हैं। वे कहते हैं की चींटी एक सरल, विरल काली रेखा के रूप में परिभाषित की जा सकती है अर्थात पंक्ति में चलती हुई चींटियाँ एक सरल विरल काली रेखा की तरह दिखाई देती हैं। जिस प्रकार अँधेरे के सामान अर्थात काले रंग का धागा हिलता-डुलता रहता है, उसी प्रकार वह भी हिलती-डुलती एक पंक्ति में चलती रहती हैं। उसके पग बहुत ही छोटे होते हैं। वह छोटे-छोटे पग भरते हुए मिल-मिलकर आगे बढ़ती रहती हैं। चींटी पाँति अर्थात पंक्ति में आगे बढ़ते हुए बिना थके, बिना रुके, लगातार अपना कार्य करती रहती है। वह कण-कण में से अपना भोजन लगातार चुनती रहती है।  

गाय चराती………………………………………………….जनपथ बुहारती।

पंत का मन चींटी पर कविता लिखते-लिखते बालकों की तरह सोचने लगता है। कवि चींटी के कार्यों का वर्णन करते हुए कहते हैं कि ऐसा प्रतीत होता है कि वह गाय चरा रही है, ऐसा लगता है कि धूप खिला रही है।  ऐसा प्रतीत होता की वह अपने बच्चों की देखभाल कर रही है। वह अत्यंत निर्भय है। सामने आने वाले शत्रुओं का सामना करती है। अपने दुश्मनों से लड़ती रहती है, उनसे तनिक भी नहीं डरती है। ऐसा लगता है कि उसके पास सैनिकों के कई दल हैं। वह अपने दल अर्थात समूह के साथ चलती है। बस उसे आदेश देने की ज़रुरत है। कभी-कभी ऐसा भी प्रतीत होता है कि वह अपने घर-आँगन और जन-पथ को भी साफ कर रही है।

Chinti Kavita Ki Vyakhya चींटी कविता की व्याख्या

देखो वह…………………………………………….वह सुनागरिक।

कवि कहते हैं की चींटी एक कुशल वास्तुकार है। इस बात का एहसास हमें उसके द्वारा चाली हुई मिट्टी के बने सुंदर घरों को देखकर हो जाता है। वह बालू या रेत के भीतर अपना विशाल दुर्ग रुपी नगर निर्माण करती है। सचमुच उसकी यह रचना अद्भुत है। वह जैसा वास्तु निर्माण करती है, वैसा अन्य कोई शिल्पी या वास्तुकार निर्माण नहीं कर सकता। चींटी द्वारा बनाए हुए दुर्ग रुपी नगर का वर्णन करते हुए कवि कहते हैं कि उस विशाल दुर्ग में महल, मंदिर, रास्ता, आँगन,  गौशाला और खाद्य भण्डार हैं। जहाँ उसके अंडे तथा घर परिवार के सदस्य आदि रहते हैं। वह आकार में लघु बिंदु की भाँती होते हुए भी अपने दल के अनेक सदस्यों (अंडों) के लिए एक भव्य शिविर का निर्माण करती है। जिस दुर्ग में कई कोठरियाँ हैं और वहाँ जाने का मार्ग भी विशाल है। वह निरंतर कठिनाइयों का सामना करते हुए और सतत मेहनत करते हुए आहे ही बढ़ती रहती है।

सुकुमार कवि के सुकुमार भावों का दर्शन इन पंक्तियों में होता है। इनमें एक सार्वजनीन सच भी दिखाई देता है, जब वह कहते हैं कि चींटी एक सामाजिक प्राणी है। यानी उसमें वे सभी मानवीय गुण हैं, जो एक परिवार-समाज के लिए ज़रूरी होते हैं। उसके आगे भी एक पग बढ़कर पंत कहते हैं कि वह अपनी आजीविका का संग्रह श्रम करके उपार्जित करती है। इसी पंक्ति के अगले शब्द में पंत जी वह कहते हैं, जिसकी कल्पना कोई ख़ास व्यक्ति भी नहीं कर सकता है। वे कहते हैं कि उसमें अच्छे नागरिक के जितने गुण होते हैं, सभी प्राप्त होते हैं। इस प्रकार कवि पंत जी ने चींटी को सामाजिक, श्रमजीवी व सुनागरिक आदि विशेषणों से सँवारा है और उसे उच्चतम स्तर पर पहुँचाया है।

Chinti Kavita Ka Moolbhav चींटी कविता का मूलभाव

हिंदी साहित्य में प्रकृति के सुकुमार कवि के रूप में प्रसिद्ध सुमित्रानंदन पंत ने केवल अपने उपनाम को सार्थक ही नहीं बनाया है, अपितु वे प्रकृति के चितेरे हैं, इस बात को सिद्ध भी किया है। प्रकृति की वनस्पतियों के साथ-साथ उन्होंने पृथ्वी पर विचरण करने वाले सूक्ष्म जीवों को भी अपनी कविता के केंद्रीय भाव का माध्यम बनाया है। उनकी कवितायेँ पढ़ने के बाद ऐसा आभास होता है, जैसे उन्होंने इस कविता को लिखने के पहले न जाने कितने दिनों-महीनों तक उस सूक्ष्म जीव की छोटी-से-छोटी हर क्रिया का अध्ययन किया होगा। उनकी प्रस्तुत कविता चींटी पर आधारित है। चींटी हर घर में पाई जाने वाली आम सूक्ष्म जीव है। जिसके प्रति ग्रामीण क्षेत्रों में श्रद्धा का भाव भी देखने को मिलता है। सभी चींटी को देखते हैं, लेकिन आम आदमी और पंत के चींटी देखने में कितना अंतर है,उनकी इस कविता में खुद-ब-खुद सिद्ध हो जाता है।

तो यह थी Chinti Kavita Ki Vyakhya चींटी कविता की व्याख्या।

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