This article will share Varsha Ki Vidai Summary वर्षा की विदाई व्याख्या
यह कविता माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा रचित है। पिछले पोस्टों में मैंने Ibrahim Gardi, Utho Dhara Ke Amar Saputoan और Sahsi Kanya के Questions & Answers शेयर किए हैं तो आप उसे भी चेक कर सकते हैं। मैंने Varsha Ki Vidai के Questions & Answers भी शेयर किए हैं तो आप उसे भी चेक ज़रूर कीजिए।
Varsha Ki Vidai Summary वर्षा की विदाई व्याख्या
शब्दार्थ
- पावस – बरसात, वृष्टि
- कछार – नदी-तट की भूमि
- पिखिनियों – पक्षी
- जाड़ा – सर्दी का मौसम
- वृन्त – डंठल
- सहज – सरल, साधारण
- अवसान – मृत्यु
- निधियाँ – धन-दौलत
- आवरण – वस्त्र, लपेटन
- उदार – दयालु
- बन्दनवारें – तोरण
उपर्युक्त पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि वर्षा ने विदाई ले ली है अर्थात वर्षा का मौसम चला गया है । वर्षा के जाने से जाड़े ने अंगड़ाई ली है अर्थात शीत ऋतु का आगमन हो गया है । प्रकृति ने पावस की अर्थात वर्षा की बूँदों से जाड़े के मौसम की जिम्मेदारी ले ली है। जाड़े का मौसम वर्षा की बूँदों की भरपाई करके मौसम को निर्मलता व नवीनता का उपहार देगा। कहने का भाव यह है कि वर्षा ऋतु जब जाती है तो सम्पूर्ण प्रकृति को ठंडक दे जाती है और जाड़े के मौसम का आगमन होता है ।
उपर्युक्त पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि बारिश के जाने से सूरज की किरणों के पथ से काले-काले बादलों के आवरण हट गए हैं जिससे किरणें धरती को पूरी तरह से प्रकाशित कर रही हैं । बरसात में जो टीले डूबे हुए थे वे अब शीत ऋतु के आगमन से सूर्य की रोशनी पड़ने से उनपर जमा पानी अब सूख गया है और मिट्टी से सुगंध आने लगी है। वर्षा ऋतु में बादलों के कारण जो दिन में ही रात जैसा अन्धकार प्रतीत होता था उन रातों के चरण अब शीत ऋतु के आगमन से हट गए हैं । बादलों की कालिमा हटकर अब सूर्य की रोशनी से सारा जग जगमगा रहा है ।
उपर्युक्त पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि वर्षा ऋतु में आकाश बड़ी उदारता दिखा रहा था अर्थात दिल खोलकर वर्षा हो रही थी यानी बारिश थमने का नाम न लेती थी लेकिन अब वर्षा के जाने से और जाड़े के आने से धरती के खेत उदार हो उठे हैं यानी वे अधिक-से-अधिक फसल देने की क्षमता दिखा रहे हैं । शीत के आगमन से इधर खेतों में चारों तरफ फसलें उग आई हैं उधर बहुत दिनों से गीली पड़ी भूमि की मिट्टी अब सूखकर हवा के साथ उड़ने लगी है जो ख़ुशी से लहराती प्रतीत हो रही है । खेतों में चारों तरफ फसलें उग आई हैं जो ख़ुशी से लहराती प्रतीत हो रही हैं।
उपर्युक्त पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि वर्षा बहुत दिनों तक रही जिससे ऊपर आकाश से नीचे जमीन पर पानी के गिरने की क्रिया जैसे अब बीत गई है यानी बरसात अब समाप्त हो गई है। वर्षा के जाने से नीचे जमीन पर चारों ओर हरियाली की छवि छाई है अर्थात धरती की शोभा देखते बन रही है। हरे-हरे, नन्हें-नन्हें पौधे अब इस तरह ऊपर की ओर बढ़ने लगे हैं कि समस्त धरत पर मानों हरियाली फिर से लौट आई प्रतीत हो रही हो।
Varsha Ki Vidai Summary वर्षा की विदाई व्याख्या
उपर्युक्त पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि वर्षा का मौसम जाने से ब्रज भूमि के पास यमुना नदी के कछार अर्थात किनारे अब इतने प्रसन्न दिखाई पड़ रहे हैं मानो बाँसुरी बजा रहे हों, ऐसा मनमोहक दृश्य नज़र आ रहा है। वर्षा के जाने से नदियों के किनारे धुल गए हैं यानी साफ़-सुथरे दिखाई दे रहे हैं। आसमान से बादल भी धुल गए हैं अर्थात अब बादलों से स्वच्छ होकर नीला आसमान दिखाई देने लगा है।
उपर्युक्त पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि वर्षा ऋतु में पानी के बहाव के साथ नदियों में जो खर-पतवार, पेड़-पौधों के डंठल इस पार से उस पार तक तैरते थे, वे अब एक स्थान पर सहज हो गए हैं। अब खेतों के घर उनके द्वार-द्वार पर बंदनवारों की तरह यानी तोड़नों की तरह फसलों से सज गए हैं। अर्थात अब हर खेत फसलों से सज गए हैं।
उपर्युक्त पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि वर्षा ऋतु के जाने से नालों, नदियों, सागरों और तालाबों ने ऐसा लगता है मानो नभ से नीलांबर यानी नीला आकाश पाया अर्थात नीले आकाश के समान जल पाया। वर्षा के कारण अब तक जो आकाश में काले-काले मेघ छाए हुए थे वे हट गए हैं, जिससे अब आकाश नीला दिखाई देने लगा है। जब आकाश में चारों तरफ बादल घिरे रहते थे तो उनकी परछाई से खेतों में भी कालिमा दिखाई देती थी, लेकिन अब उन बादलों के हट जाने से, सूर्य के प्रकाश के सीधे धरती पर आने से बादलों की कालिमा मिट गई है और चारों तरफ हरी-हरी फसलों के सजने से सारी धरती हरे रंग की दिखाई देने लगी है।
Varsha Ki Vidai Summary वर्षा की विदाई व्याख्या
उपर्युक्त पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि वर्षा के जाने से जो धरती पर चारों तरफ हरियाली बिखरी है उसकी शोभा देखते बन रही है। ऐसी हरियाली की छवि पर से जब शीतल हवाएँ बहती हैं तो वे ऐसा आभास देती हैं कि मानो वे साधारण हवाएँ न होकर मलयानिल हों। बारिश के जाने से पंखधारी पक्षी खुश होकर चहक रहे हैं। पौधों की डालियों पर कलियाँ अब फूलों के रूप में नए मेहमान की तरह खिल उठी हैं।
उपर्युक्त पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि वर्षा के जाने से मानो अब फिर से आकाश में बादलों के घिरने की और आसमान से बारिश के रूप में पानी गिरने के तरल रहस्य अचानक समाप्त हो गए हैं। अब धरती पर नन्हें-नन्हें पौधे बढ़ रहे हैं और दाएँ-बाएँ से हवाएँ चलकर उन्हें दुलार रही हैं मानों वे पौधों को सम्मान दे रही हों। ऐसा लग रहा है कि पौधों की वजह से धरती का श्रृंगार बढ़ गया और उससे उनका मान भी बढ़ गया।
उपर्युक्त पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि शीत ऋतु के आगमन से धरती पर मौसमी हवा भी बहने लगी है जो राधा के समान सौंदर्यवान दिखाई दे रही है। धरती का सौंदर्य देखकर कवि की यादों में निधियों यानी धन-संपत्ति की भाँति मन को मोहने वाले मनमोहन, वृंदावन की कुंज लताओं में अक्सर राधा के साथ दिखाई देने वाले कुंज बिहारी अर्थात कृष्ण की याद आ रही है। कवि के कहने का भाव यह है कि वर्षा के जाने से और शीत ऋतु के आने से धरती पर चारों तरफ वातावरण इतना सुहावना हो गया है कि कवि को राधा-कृष्ण का प्रेम और वृंदावन की कुंज लताओं का सौंदर्य याद आ रहा है।
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