This article will share Udbodhan Questions & Answers उदबोधन प्रश्न और उत्तर
पिछले पोस्टों में मैंने Ajanta Ellora Kee Yatra, Yaksh Prashan और Do Laghu Kavitayen Mausam Par के Questions & Answers शेयर किए हैं तो आप उसे भी चेक कर सकते हैं।
Udbodhan Questions & Answers उदबोधन प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1: इस कविता के रचयिता कौन हैं?
उत्तर: इस कविता के रचयिता मैथिलीशरण गुप्त हैं।
प्रश्न 2: आगे बढ़ने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर: मार्ग की बाधाओं को दूर करके, एकता का प्रसार करते हुए समय के साथ चलना चाहिए।
प्रश्न 3: मनुष्य में एकता क्यों नहीं है?
उत्तर: एक-दूसरे से ईर्ष्या की भावना के कारण मनुष्य में एकता नहीं है।
प्रश्न 4: हमें स्वयं को किसके अनुसार बदल लेना चाहिए?
उत्तर: हमें स्वयं को समय और परिस्थिति के अनुसार बदल लेना चाहिए।
प्रश्न 5: ‘उदबोधन’ कविता का मुख्य भाव क्या है?
उत्तर: इस कविता का मुख्य भाव है – कर्मवीर बनकर अपने मार्ग की बाधाओं को दूर करो। एकता की भावना का प्रसार करो और समय को देखकर चलो।
प्रश्न 6: इस कविता में कवि क्या प्रेरणा दे रहा है?
उत्तर: इस कविता में कवि एक-दूसरे के प्रति ईर्ष्या की भावना त्याग कर एकता बनाए रखने की प्रेरणा दे रहा है। कवि कहता है कि हमें समय के साथ चलना चाहिए।
प्रश्न 7: दीपक की तुलना में हम कैसा व्यवहार करते हैं?
उत्तर: दीपक स्वयं कष्ट सहकर दूसरों को प्रकाश देता है। परंतु दीपक की तुलना में हमारे मन एक-दूसरे से नहीं मिलते। हम एक-दूसरे को ही दुख देते हैं।
प्रश्न 8: भाग्य और पौरुष में क्या अंतर है?
उत्तर: भाग्य के भरोसे रहने वाला व्यक्ति कभी आगे नहीं बढ़ सकता। इसके विपरीत जो पुरुषार्थ दिखाकर मेहनत की कमाई कहते हैं वे ही सफल होते हैं।
प्रश्न 9: समय के अनुसार स्वयं को बदलने से क्या लाभ होते हैं?
उत्तर: समय के अनुसार स्वयं को बदलने से हम दुनिया के साथ चलते हैं। अगर हम समय के अनुसार नहीं बदलते तो हम सारे जग से पीछे रह जाएँगे।
प्रश्न 10: सरलार्थ लिखो:
उत्तर: कवि कहता है कि संसार की युद्ध भूमि पर धैर्य रखना सीखो। रास्ते में आने वाली विघ्न-बाधाओं से मत डरो। जीवित होते हुए भी मृत की तरह जीवन मत बिताओ। वीर की भांति तुम अपने रास्ते में आने वाली सारी बाधाएँ पार करते हुए चलो।
प्रश्न 11: कविता का सार एवं प्रतिपादय अपने शब्दों में लिखो।
उत्तर: इस कविता में कवि भारतवासियों को बाधाओं का दृढ़तापूर्वक सामना करने का उदबोधन करता है। हमें मार्ग की बाधाओं से नहीं घबराना चाहिए। कवि भाग्यवादी न बनने की बात भी कहता है, कर्म करो, उदयम करो, तभी सफलता मिलेगी।
कवि आपस में मेल-जोल की भावना बढ़ाने पर बल देता है। दीपक स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देता है। हमें भी उससे परोपकार की प्रेरणा लेनी चाहिए। हमें समय देखकर अपनी चाल का सही निर्धारण करना चाहिए। सभी पुरानी बातें अब नहीं चल पाएँगी।
प्रतिपादय – परिवर्तन सृष्टि का नियम है। नव-निर्माण के प्रति समर्पण की भावना की आवश्यकता है। भाग्यवाद के स्थान पर कर्मवाद को अपनाओ। परोपकारी बनो और समयानुकूल परिवर्तन लाओ।
तो ये थे प्रश्न और उत्तर।